Other Indian Publishers Books - Get your Book Anywere-Packing & Postal Charges Extra.
Pages
Shiv Kaun Hain ?
शंकर जी को शिव शंकर क्यो कहते हैं ?
शिव क्या हैं ?
शिव कौन हैं ?
शंकर जी थे , काशी नरेश, काशी के राजा ,काशी की प्रजा उन्हें अपना राजा मानती थी , है , आज भी काशी उन्ही की है , जो भी काशी में रहता है , शंकर जी को अपना सब कुछ मानता है । क्यों ?
तो फिर शंकर जी को शिव शंकर क्यो कहते है ?
शंकर जी शिव कब हो गए ?
प्रशन वही शिव क्या है , कौन हैं , कैसे बनते हैं शिव ?
शिव एक उपाधी है । एक आध्यात्मिक उपाधी ।
जो शिव हो जाता है उसको मिलती है ये उपाधी ।
तो शिव क्या है , शिव कैसे हो सकते है ?
अब तक बस एक ही शिव हुए हैं ?
शिव शंकर ?
शिव को मानने वाले शैव ।
लेकिन शिव क्या हैं ?
क्या मैं शिव हो सकता हूँ ?
हो सकते हो ! जो शंकर जी ने किया वो करो ।
क्या किया शंकर जी ने जो वह शिव हो गए ?
शिव होने से पहले शंकर जी क्या थे, ये समझना पड़ेगा ।
उन्होंने ऐसा क्या समझा की वह शिव हो गए ?
उन्होंने ऐसा क्या किया की वह शिव हो गए ?
Bhagwan Ko Priya kaun ?
हनुमान या विभीषण ?
भगवान् को दोनों प्रिय है , लेकिन हनुमान अधिक प्रिय है , क्यो ?
हनुमान और विभीषण दोनों ही भगवान् का नाम जपते है ।
हनुमान और विभीषण दोनों ही भगवान् को हर समय याद रखते है ।
लेकिन दोनों में एक अन्तर है !
हनुमान भगवान् को अधिक प्रिय है !
क्या विभीषण रावण का भाई था इस लिए अधिक प्रिय नही है ?
क्या उसने रावण को धोखा दिया था इसलिए अधिक प्रिय नहीं है ?
क्या कारण है की विभीषण भगवान् को प्रिय है लेकिन हनुमान जी अधिक प्रिय है ?
हनुमान जी के मन्दिर है , विभीषण जी के नही ! क्यो ?
हनुमान जी के मन्दिर में राम जी मूर्ति हो जरुरी नही !
लेकिन राम जी का मन्दिर हो हनुमान जी ना हों ऐसा हो नहीं सकता ! क्यो ?
हनुमान जी राम जी को अधिक प्रिय क्यो है ?
हनुमान जी राम जी का नाम लेते हैं तो वो तो विभीषण भी लेते हैं
भगवान् संबंधों को नहीं मानते कौन किसका भाई है ! जो भगवान् को भजता है वो राम जी को प्यारा है !
विभीषण ने धर्म का साथ दिया है । भगवान् के पास तो अभय प्राप्त करने आए थे , तो धोखा कैसा !
फिर भी हनुमान जी राम जी को प्रिय है !
क्या बात है की हनुमान जी राम जी को प्रिय है ?
हनुमान जी राम जी को प्रिय है क्योकि हनुमान जी राम जी का नाम ही लेते हैं ऐसा नहीं है , उनके नाम का जप करते हैं हर समय केवल ऐसा है ,नहीं केवल ऐसा ही नहीं है , हनुमान जी एक काम और करते है जो विभीषण " आप और हम " नहीं करते, आप और हम भी तो राम जी का नाम लेते है ,जप करते हैं, हम भी तो राम जी को प्रिय है , भगवान् को हम सब प्रिय हैं , लेकिन फ़िर भी हनुमान जी राम जी को अधिक प्रिय है , क्यो ?
क्योकि हनुमानजी राम जी नाम भी लेते है और काम भी करते हैं , वो भगवान् का काम करते हैं, वो भगवान का सब काम करते है , वो सब काम भगवान् का है ऐसा करके करते है, उनमें कोई स्वार्थ नहीं है , हर कार्य प्रभु का है यही सोच के करते है ,कार्य कितना कठिन है ये नहीं सोचते , बस कार्य प्रभु जी का है राम जी का है ,ऐसा सोच के करते है , मुझे ये काम करने से क्या लाभ होगा नहीं सोचते, कितनी कठिनाइयों के बाद ये काम हुआ है, मुझे क्या मिला नहीं सोचते ,मैंने राम जी का काम किया ,ऐसा भी तो नहीं सोचते , बस मेरा काम तो प्रभु का हर काम करना है , संसार के सारे काम प्रभु की आज्ञा है बस यही सोच के करना है , समर्पण है रामजी में, पूर्ण समर्पण है प्रभु में ,कुछ और है ही नहीं ।
बस इसी कारण हनुमान जी रामजी को अधिक प्रिय है । बस इसी कारण हम रामजी को प्रिय है ,लेकिन हनुमान जी अधिक प्रिय है ।
Bharwad Gita
भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से क्या कहा ?
क्या महाभारत द्वापर में ही हुई थी ?
कुरुक्षेत्र क्या है और कहाँ है ?
महाभारत के पात्र कौन थे ?
भागवद गीता जीव का जीवन है । जीवन में परमात्मा " श्री कृष्ण " हमरी आत्मा हैं । हम मनुष्यों के लिए ही दिया है गीता का उपदेश । हम ही है " अर्जुन " अपने आप को नही पहचानते की हम क्या है ?हम में क्या हैं ? हमारे कर्तव्य क्या हैं ? हम क्या कर सकते हैं ? हम अपने बारे में कितना जानते हैं । हम में रूचि व ज्ञान किन विषयों का हैं । हम किस विषय पर ज्यादा एकाग्रचित हो कर कार्य कर सकते हैं । कर्मयोग ,ज्ञानयोग ,भक्तियोग अर्थात कर्तव्यों का पालन , विषय क्षमता व उपलब्ध साधनों का ज्ञान , विषय के लिए लगन व समर्पण का होना । इन तीनो ही में के किसी एक का न होना ' विषय ' अर्थात कार्य के होने में संशय प्रदान करता हैं ।
"कुरुक्षेत्र" हैं कर्म क्षेत्र जहाँ जीव अपने जीवन में होने वाले संघर्ष को ठीक दृष्टि कोण से नही देखते और जीवन को उलझनों में फंसा देते है ।
"महाभारत" हमारे जीवन भर होने वाली वो सभी घटनाओ और अनुभवों पर निर्भर करता जो हमारे "व्यक्ति का नाम " साथ होती है जिसे हम कहते हैं की हमारा जीवन ऐसा था , हैं या होगा ।
वेदव्यास की रचना है " महाभारत " उन्होंने जो आत्मदर्शन किया उसको उन्होंने एक महाकाव्य का रूप दे दिया । अनुभव में आता है कि जैसा हम सोचते है चिंतन -मनन करते है समय आने पर वैसा ही होने लगता है । हमारी इच्छाए ही लगातार चिंतन - मनन करते रहने से स्वरुप धारण करने लगती है ।
महाभारत के पात्र "ध्रतराष्ट्र" जन्मांध और उनकी पत्नी गांधारी थे । दुर्योधन के सौ भाई थे । पांडू और उनकी पत्नी कुंती उनका पहला पुत्र जो विवाह से पहले जन्मा कर्ण जो की सूर्य पुत्र था । पांडव पाँच भाई थे । युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन , नकुल व सहदेव । कर्ण पांडवो का भाई था मगर कौरवो के साथ था । शकुनी मामा , कुंती , पांचाली द्रोपदी ,