भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन से क्या कहा ?
क्या महाभारत द्वापर में ही हुई थी ?
कुरुक्षेत्र क्या है और कहाँ है ?
महाभारत के पात्र कौन थे ?
भागवद गीता जीव का जीवन है । जीवन में परमात्मा " श्री कृष्ण " हमरी आत्मा हैं । हम मनुष्यों के लिए ही दिया है गीता का उपदेश । हम ही है " अर्जुन " अपने आप को नही पहचानते की हम क्या है ?हम में क्या हैं ? हमारे कर्तव्य क्या हैं ? हम क्या कर सकते हैं ? हम अपने बारे में कितना जानते हैं । हम में रूचि व ज्ञान किन विषयों का हैं । हम किस विषय पर ज्यादा एकाग्रचित हो कर कार्य कर सकते हैं । कर्मयोग ,ज्ञानयोग ,भक्तियोग अर्थात कर्तव्यों का पालन , विषय क्षमता व उपलब्ध साधनों का ज्ञान , विषय के लिए लगन व समर्पण का होना । इन तीनो ही में के किसी एक का न होना ' विषय ' अर्थात कार्य के होने में संशय प्रदान करता हैं ।
"कुरुक्षेत्र" हैं कर्म क्षेत्र जहाँ जीव अपने जीवन में होने वाले संघर्ष को ठीक दृष्टि कोण से नही देखते और जीवन को उलझनों में फंसा देते है ।
"महाभारत" हमारे जीवन भर होने वाली वो सभी घटनाओ और अनुभवों पर निर्भर करता जो हमारे "व्यक्ति का नाम " साथ होती है जिसे हम कहते हैं की हमारा जीवन ऐसा था , हैं या होगा ।
वेदव्यास की रचना है " महाभारत " उन्होंने जो आत्मदर्शन किया उसको उन्होंने एक महाकाव्य का रूप दे दिया । अनुभव में आता है कि जैसा हम सोचते है चिंतन -मनन करते है समय आने पर वैसा ही होने लगता है । हमारी इच्छाए ही लगातार चिंतन - मनन करते रहने से स्वरुप धारण करने लगती है ।
महाभारत के पात्र "ध्रतराष्ट्र" जन्मांध और उनकी पत्नी गांधारी थे । दुर्योधन के सौ भाई थे । पांडू और उनकी पत्नी कुंती उनका पहला पुत्र जो विवाह से पहले जन्मा कर्ण जो की सूर्य पुत्र था । पांडव पाँच भाई थे । युधिष्ठिर , भीम , अर्जुन , नकुल व सहदेव । कर्ण पांडवो का भाई था मगर कौरवो के साथ था । शकुनी मामा , कुंती , पांचाली द्रोपदी ,
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